शिकवा
शिकवा
अँखियों के बन्द हो, जाने से क्या सोचता तू।
मुस्कुराहट के खो, जाने से क्या है सोचता तू।
शिकवा शिकायतों की, तौहीम जो करता तू।
उसमें फिर ऐतबार, मुख़ातिब क्यूँ करता तू।
सुन हार्दिक जाँ से, पहले लफ्ज़ बिखर तू।
गल शिकायत किसी, को हो गर कह दे तू।
मोहब्बत की तौहीम,अब दुष्वार न कर तू।
लफ़्ज़ के बोल कब, बिखरतें अब जाना तू।
हार्दिक समझ से परे, लड़ कर अड़ जाना तू।
ना कर किसी से कोई, शिकवा गीला अब तू।
