शहीद की पत्नी का दर्द
शहीद की पत्नी का दर्द
आज़ादी
याद करो सन ४७ कितनों ने जान गँवाई थी
कितने वीरो को खोकर हमने आज़ादी पाई थी
अब हम अपनी आज़ादी को मनायेंगे
फिर से हम उन वीरों के गान को गाएंगे
जाने कितनी माँओं ने माथे की बिंदिया हटाई थी
कितने वीरों को खोकर हमने आज़ादी पाई थी
याद करो सन ३१को जब भगत फांसी पर लटका था
उसकी मां को फिर लगा अचानक झटका था
प्राणों को देकर भी उसने उम्मीद नहीं गँवाई थी
कितने वीरों को खोकर हमने आज़ादी पाई थी
याद करो उस छोटी सी मनु को कितनों का खून बहाया था
देख के उसको लोगों में फिर नया प्रसार सा आया था
बांध के दत्तक पुत्र को अपने प्राणों की बाज़ी लगाई थी
कितने वीरों को खोकर हमने आज़ादी पाई थी
चलो आज हम सब फिर से उन वीरो को याद करें
उनके जैसे लालों को पाने की हम फरियाद करें
आज़ादी के चक्कर में कितनों ने लड़ी लड़ाई थी
कितने वीरों को खोकर हमने आज़ादी पाई थी