शायर साहिबान
शायर साहिबान
गज़ल सी है सूरत, नैन कोरे पन्ने, किसी ऐसे साहित्य के वो जहान से है,
कि जिंदगी काजी उनकी, किसी ऐसे मस्जिद की कुरान से हैं,
खो गए हैं जो अजी़ज उनके, ढूंढ रहे वो हर पल एक बिन मखौटे की मुसकान से है,
कि लिखते है कहानियाँ अपने अतीत की ये, कहते तो लोक बहुत एहसान से है,
खो जाते है गुमनाम रास्तो में ये, कुछ ऐसे ये शायर साहिबान से हैं,
कि हर चेहरे में अब ये उन्हें देखते हैं,
इसलिए मोहब्बत इन्हें अब हर इंसान से हैं,
थकते नहीं हैं यह लिखते लिखते,
कुछ ऐसे लगे इन्हें तीर उस इश्क़-ए-बान से हैं,
यु तो इन्हें बेवफ़ा कहते हैं लोक,
पर हर मेहफ़िल में जाने जाते ये अपनी वफ़ा ए दास्तान से हैं,
इनके दर दर आती लफ़्ज़ों की आँधिया देती दुहार हैं,
कुछ इस तरह इनके मन में उठे अल्फाज़ किसी क्रांति के तूफान से हैं,
यु तो सुनने वाले बहुत हैं इनके ज़ख्मों के इल्म को,
कोई समझ भी पाए इनकी गहराई, कुछ ऐसे इनके अरमान से हैं,
बातें करते हैं ये शायर बहुत बड़ी बड़ी,
समझ नही पाती हु मैं
, कुछ ऐसे ये विद्वान से हैं,
गुम जाते हैं अंजान रास्तों में ये,
कुछ ऐसे ये शायर साहिबान से हैं,
ख़ुद को तराशा करते हैं ये, अपनी ही कविताओं की पंक्तियों में,
मिल जाएं जिस दिन इन्हें, उस दिन ये आसमान पे हैं,
खुली किताब से ये दीवाने आवारा शायर,
ढुंढ रहे हर पल वो छोटी छोटी खुशियाँ, कुछ ऐसे भोले नादान से हैं,
कुछ ज्यादा नहीं चाहिए इन्हें जिंदगी से,
बस अपनी हस्ती माँग रहे भगवान से हैं,
कायम रखे अल्ला इनकी कलम को,
लिखते जो ये शायर सौ दफा पुरान से हैं,
निभाते रहे ये दिल्लगी उनसे,
ख़ुद बेपाक कैहलाते, कर देते पाक को क़ुरबान ये हैं,
कि मशहूर हैं ये भर बाज़ार में अपनी बातों के लिए,
इश्क़ कर बैठे किसी ख़ामोशी के मान में हैं,
ग़ज़ल सी है सूरत, नैन कोरे पन्ने से, किसी ऐसे साहित्य के ये जहान से हैं,
खो जाते हैं अंजान रास्तों में ये,
कुछ ऐसे हमारे ये प्यारे शायर साहिबान से हैं,
कुछ ऐसे हमारे ये शायर साहिबान से हैं!