शायद बड़ी हो रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं
"मुस्कुराते हुए चेहरों के पीछे छिपे
लाखों दर्द देख रही थी मैं
उन झुर्रियों के पीछे छिपे लाखों बलिदान देख रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं"
"जिस दुनिया के अनोखे रंगों को देखा था मैंने
उन रंगों के पीछे छिपे अंधेरे को देख रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं"
"माँ की डाँट में भी प्यार ढूँढ रही थी मैं
भाई के गुस्से में भी दुलार ढूँढ रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं "
"पापा के फटे जूतों के पीछे छिपे
संघर्ष देख रही थी मैं
दुनिया की रीतों से उठकर अपनी पहचान ढूँढ रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं "
"जिन हाथों को थामकर चलना सीखा था मैंने
उन हाथों को छोड़कर उड़ना सीख रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं"
"एक जीत के पीछे छिपी
लाखों ठोकरें देख रही थी मैं
अपनी हर खुशी के पीछे छिपे मेरे
माँ -बाप के लाखों दर्द देख रही थी मैं "
शायद बड़ी हो रही थी मैं
शायद बड़ी हो रही थी मैं।