साथी
साथी
आज मैं घर से निकली,कयी दिन बाद।
राह मे कुछ साथी मिले,
कुछ अनमने कुछ निःस्तब्ध,
कुछ खिले खिले बातें हुई मन खुले ,
मैंने देखा, अपने तीन साथियों के साथ।
वह भी खड़ा है।
शांत मौन मुझे स्पर्श किया, दूर हट गया।
मैंने उसे देखा, उसने पूंछ हिलाई।
मैंने पुकारा अरे भोला, वह नाच उठा,
अपना पूरा बदन हिला दिया, मुदित मन से,
स्नेह का मूक स्वर, देखा मैंने उसकी आँखों में।
संवेदना, मानव से बड़ी, मानव की पराकाष्ठा,
जहां मानव पहुंचा ही नहीं।