मेघ
मेघ
घनश्याम घुमड़ रहें हैं, तप्त धरा उल्लसित है,
बरसेंगेंं घन, मेरी गोद हरी होगी,
फूलेंगेंं वन ,बाग,तड़ाग,सब नदियां भी प्रमुदित होंगी।
बांटूगीं मैं नीर सभी को जो जीवन का है पारावार,
मैं सबकी, मेरी है वसुधा,यही सदा से रहा विचार।
घनश्याम घुमड़ रहें हैं, तप्त धरा उल्लसित है,
बरसेंगेंं घन, मेरी गोद हरी होगी,
फूलेंगेंं वन ,बाग,तड़ाग,सब नदियां भी प्रमुदित होंगी।
बांटूगीं मैं नीर सभी को जो जीवन का है पारावार,
मैं सबकी, मेरी है वसुधा,यही सदा से रहा विचार।