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कुमार संदीप

Abstract

5.0  

कुमार संदीप

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सांझ

सांझ

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दिन भर जूझकर

अनगिनत परेशानी

जब एक गरीब लौटता है

सांझ में


रहती है उस क्षण उसकी आँखें नम

ठंड की ठिठुरन हो

या जेठ की तीखी धूप

गरीब झेलता है परेशानी

प्रतिकूल परिस्थिति में भी

करता है काम


नहीं करता है कभी आराम

पेट की भूख और

मुनिया की शादी की जिम्मेदारी

जो है उसके सिर पर

सुबह सवेरे उठ कर जाता है


काम पर

सांझ में जब है लौटता

चेहरे पर रहती है मायूसी छाई

काश ! आए कभी ऐसा वक्त

या सांझ


जिस दिन दूर जाए

उसकी गरीबी

उसकी बेबसी।


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