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subhash saini

Abstract

4.8  

subhash saini

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साम्राज्ञी

साम्राज्ञी

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578


मेरे प्रिय घर की साम्राज्ञी,

चक्रवर्ती एक क्षत्र महारानी।


उच्च सिंहासन पर सुशोभित,

ग्रह शौर्यचक्र धारिणी।

घर के हर चप्पे में व्याप्त,

चेतना सी प्राण वाहिनी।


चॅहू और से जय जय प्रकट,

सब कुछ उसका वह सत्ता धारिणी।

मेरे प्रिय घर की साम्राज्ञी,

चक्रवर्ती एक छत्र महारानी।


फ़र्श घर का, कपड़े, बर्तन,

दमके पा श्रम और निगरानी।

ड्राइंग, बैड, रसोई, शौचालय,

साफ उज्वल सबकी कहानी

सजता आंगन, पीछे टैरेस,

कतार में पौधे बने सेनानी।


अपने अपने गमलो में विराजित,

पाते स्नेह खाद और पानी।

मेरे प्रिय घर की साम्राज्ञी,

चक्रवर्ती एक क्षत्र महारानी।


सौन्दर्य ही सौन्दर्य घर में,

खिलती बन सुमन स्वयं ही रानी।

पाक कला की विशिष्टताऍ,

सुस्वादु भोजन आनंद दायिनी।


कर्णप्रिय मधुर गायन,

पायी प्रशंसा बनकर सुरज्ञानी।

मेरे घर की गौरव गरिमा,

सबकी सहेली, सबकी मित्राणी।


अनुग्रहित हूँ, आभार उसका,

मैं पाता आनंद वह आनंद दायिनी।

मेरे प्रिय घर की साम्राज्ञी,

चक्रवर्ती एक क्षत्र महारानी।


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