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Sumit Sahu

Inspirational

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Sumit Sahu

Inspirational

राही हूँ....

राही हूँ....

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राही हूँ चलता रहूँगा,

थकूँगा पर रूकूँगा नहीं ।


लेखक के कलम की स्याही हूँ

पता है की खत्म हो जाऊँगा,

पर पन्नों पर अपनी छाप छोड़ जाऊँगा ।


उगते हुएे सूरज की पहली किरण हूँ

पता है दिन ढलते ही खो जाऊँगा,

पर वादा करताा हूँ

अगली सुबह फिर से आऊँगा ।


राही हूँ चलता रहूँगा॥


बारिश का बहता पानी हूँ

पता है यूँ ही बह जाऊँगा,

पर बहते-बहते

बंजर पडी़ जमींं को भी हरा कर जाऊँगा।


इंसान हूँ इन्सानियत की राह पर चलता रहूँगा

पता है कि एक दिन ये साँसेे भी थम जायेंगी,

पर वादा करता हूँँ

जाते-जाते इस खूबसूरत दुनिया को और भी खूबसूरत हाथों में थमा कर जाऊँगा ।


राही हूँ चलता जाऊँगा ॥


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