राह
राह
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राह में अनगिनत मोड़ है पर गिरते संभलते चला हूँ मैं
ख़्याल जो जहन में उन्हीं को मुकम्मल करने चला हूँ मैं
राह में अनगिनत मोड़ है पर गिरते संभलते चला हूँ मैं
ख़्याल जो जहन में उन्हीं को मुकम्मल करने चला हूँ मैं