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पुरानी डायरी की धूल

पुरानी डायरी की धूल

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उस पुरानी डायरी की धूल की कसम, आहटें आज भी हैं।
कुछ मुकम्मल ख्व़ाब, पर अधूरे होने पर नाज़ भी हैं,
दिल की बर्फ़ जब पिघली, तो बढ़ा प्रेम जलस्तर...
भूलने की कवायद सुर और ये साज़ भी है।


यौवन का साहित्य दूर ले चला तुम्हे कहाँ,
फिर इस तरह लफ़्ज़ों मे आवाज़ भी है,
नशीला, झरोखा लूट ले गया नींदों को,
यह किस तरह का बोझ एक राज़ भी है,
यह दूरियाँ सिर्फ़ नज़रों का धोखा ही नही,
इनके बीच अपना एक समाज भी है,
यह धूमिल सा एहसासी पाठ्यक्रम,
छल के सूखे मे उगता अनाज भी है।


जब कलम हुई बेरोज़गार इस कदर,
तो सबसे ज़्यादा कामकाज भी है,
खरीद ना सका वो इस शक्सियत को,
यादों की रिश्वत देकर बचाई लाज आज भी है,
इतनी महंगी संगीती दुनिया मे,
छोटे और सस्ते हमारे अल्फ़ाज़ भी हैं।                

कुछ मुकम्मल ख्वाब, पर अधूरे होने पर नाज़ भी हैं,

उस पुरानी डायरी की धूल की कसम, आहटें आज भी हैं।


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