पत्थर की आह
पत्थर की आह
पत्थर अगर कुछ कहता
अपना दुःख बयां करता
कई जगह से तोडा मुझको
घिस कर कई खरोच है पायी
न जाने क्या क्या गुजरी है मुझपे
न जाने कितनी चोट है खायी
तब जाके इंसान को मुझमे,
भगवान की मूरत नझर है आयी
मैं तो हूँ पत्थर, तू इंसान कहलाता है
देता है दर्द जिसको,उसीकी इबादत करता है !
मेरी आह न सुनी तूने,
अब गुहार लगता है
दुआएं कुबूल करलु तेरी,
मुझसे यह उम्मीद रखता है ?