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Kamlesh Padiya

Others

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Kamlesh Padiya

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कर्मक्षेत्र

कर्मक्षेत्र

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कुछ सवालों का अवसर, 

हम को भी दे दे गिरिधर ।

हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा है।।


जंग जीते या जिंदगी जिये,

इसी दुविधा में पड़ा है।।


अहंकार के लाक्षागृह से,

किसी तरह बच पाया है।

ईमान, धरम, लज्जा, शर्म, सब कुछ तो,

जिंदगी  के जुए में हार कर आया है।।


किस पर उठाए गांडीव , 

अब किस पर साधे निशाना ।

पांडव भी खुद, और कौरव भी खुद ही में पाया है ।।


खुद को हराकर, खुद ही से जीतना है।

आज की महाभारत में फर्क बस इतना है ।।


कुछ सवालों का अवसर, 

हम को भी दे दे गिरिधर ।

हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा है ।।


हर कोई पितामह भीष्म सा,

अरमानो की शय्या पर तड़प रहा है।

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 हर कोई मजबूर अर्जुन सा,

अपनो से ही उलझ रहा है।।


अभिमन्यु सा हर कोई,

जवाबदारी के चक्रव्यूह ने फंसा है ।

हर किसी के गृहस्थी का पहिया ,

कर्ण सा, कीचड़ में धंसा है ।।


महाभारत के हर पात्र का दुःख 

एक इंसान में सिमट आया है।

हर इंसान अपने आप में 

पूरी महाभारत जी रहा है ।। 


कुछ सवालों का अवसर, 

हम को भी दे दे गिरिधर ।

हर इंसान यहाँ अर्जुन सा कर्मक्षेत्र में खड़ा है।।


यूंतो सवाल कुछ भारी है

अब के नादान इंसान की बारी है ।


जवाब देना तुझे भी आसान नहीं होगा ।

पर यकीन है मुझे, तू परेशान नहीं होगा ।।


पा कर भी अवसर, यह कुछ बोल नहीं पायेगा ।

खुद से ही अनजान है, तुझ से क्या सवाल कर पायेगा ।।


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