प्रश्न
प्रश्न
आज उगा नन्हा पौधा,
कल मानव बन कर महकेगा।
पर प्रश्न उठा मेरे मन में,
क्या वह मानव ही होगा?
इस धूप छाँव के जीवन में,
इस तरु विहीन से उपवन में,
कण- कण के स्वार्थ थपेड़ो में,
कैसी वह अलख जलाएगा?
इक टीस उठी मेरे मन में,
क्या मेरा बचपन बीता था।
तेरा मेरा शब्द नहीं था,
मेरी बगिया के शब्द कोष में।
हे परमशक्ति मैं जान न पाया,
ये कैसा तूने न्याय दिखाया।
जो जन जनहितकरे लड़ाई,
क्योंपीड़ा उसके भाग में आई।
विज्ञान तो उन्नति करते चला,
तू कल पैदल, आज नभ पे चला।
तकनीकी भी आगे बढ़ती गयी,
पर मानवता क्यों गिरती गयी।
आओ फिर भी उम्मीद करें,
कोई राम तो जन्मेगा।
स्वामी, बुद्ध व परमहंस बन,
जग में ज्ञान बिखेरेगा।
हाँ वह मानव ही होगा,
हाँ वह मानव ही होगा।