प्रकृति की प्रभूति
प्रकृति की प्रभूति
देखो जरा उन पेड़ों को
जो देते है हमे फल
छाँव देने वाले वह जीव
खड़े रहते है दिन भर
सुनो जरा उन पक्षियों को
चहचहाते है जो दिन भर
मधुर संगीत गाने के पश्चात भी
कर देते हम उन्हें पिंजरे में बंद
चखो जरा उन खट्टे बेरो को
जो कुदरत से है आई
दिल हल्का कर लेने को
अनेक स्वाद है लाई
महसूस करो उस झरने को
जो निर्मल जल है लाई
झर- झर बहते हुए नदी से
मिट्टी को उठा लाई ।