प्रेम
प्रेम
प्रेम अबूझ पहेली सा
कभी सब समा ले,
कभी दो भी न आए।
कभी प्यारा रिश्ता,
कभी बंधन सा
कोई कैसे निभाए।
कभी खेल,
कभी अनन्त परीक्षा
बन जाए।
कभी अंतहीन,
कभी पल भर जोश के साथ
मिट जाए।
कभी उम्र भर साथ के
बाद भी न पनप पाए
कभी पलक झपकते
अपना बनाए।
प्रेम रूहानी गीत बन जाए,
प्रेम विरही अधूरी प्रीत बन जाए।
ये प्रेम जो भी बला हो,
हर मनुष्य खुद सच्चा जाने जब
इसे कम से कम
एक बार तो जी पाए।