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Sangeeta Sharma

Romance

3  

Sangeeta Sharma

Romance

प्रेम

प्रेम

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पढ़ा था बहुत कभी

शब्दों के स्पर्श से

जाग उठा था ' प्रेम '

भिगोता बाहर से

भीतर तक अंतर्मन

लगा जीने लगी हूँ।


सांस से आस तक

पोर - पोर में

पल - पल सिंचित

प्रतिदान - रहित कामना से

अधिकतम उडेलती रही

पर कहां उकेर पाई

यह एक शब्द

तुम्हारे हृदय पर।


और अब तक

उस अनउकेरे को

प्रारब्ध में ढालती

समष्टि में गतिमान हूँ।


उसे जान लेने की

कैसी है ज़िद है

सदियों से रहा है

जीवन-मृत्यु का प्रश्न ।


कालजयी है

उसकी यह खोज

हालांकि खोज लेने का एहसास

भी होता रहा

बार-बार

भीतर ही भीतर कहीं।



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