पंडितों का पाखण्ड
पंडितों का पाखण्ड
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पंडित तो वह बनता था
पर पंडित ना वो कहलाया
काम थे उसके पंडितो वाले
विचारों से वह पाखंडी था
लोगों द्वारा पूजा जाता
जाति से जो पंडित था
जाति से ही पंडित था
इसलिए बना वह पंडित था
दूसरों को वह नीचा समझता
चाहे हो छोटा या बड़ा
आंखो में उसके ईर्ष्या दिखती
नफरत भी उसके मुंह पर झलकती
मुंह पर राम नाम था उसके
कमाई का जो साधन था
क्या जाति पंडित होने से
हम पंडित बन जाते है
या चाहिए होती हमको उनके जैसी तपस्या
धोती, चोटी, जनेऊ पहनकर
पंडित तो तुम बन जाओगे
पर पंडित ना तुम कहलाओगे
स्वार्थी इतना बन बैठा था
अपनों पर ही बरस पड़ा था
सच में वह पंडित होता
घमंड ना उसको इतना होता
वाणी उसकी मधुर होती
व्यक्तित्व से वह सादा होता
फिर पंडित तो वह बनता पर
पंडित भी कहलाता।