पिता
पिता
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जाते जाते वो अपने जाने का ग़म दे गये…
सब बहारें ले गये रोने का मौसम दे गये…
ढूंढती है निगाह पर अब वो कहीं नहीं…
अपने होने का वो मुझे कैसा भ्रम दे गये…
मुझे मेरे पापा की सूरत याद आती है…
वो तो ना रहे अपनी यादों का सितम दे गये…
एक अजीब सा सन्नाटा है आज कल मेरे घर में…
घर की दरो दीवार को उदासी पेहाम दे गये…
बदल गयी है अब तासीर, तासीरी जिन्दगी की…
तुम क्या गये आँखो में मंज़रे मातम दे गये…