फूलों की बातें
फूलों की बातें
फूलों का ये कहना है
दिल की बातें दिल में ही रखना है
छीन ले जाता कोई खुश्बू
बस इस बात का तो रोना है।
फूल बिन सेहरे- गजरे
उदास हुए
याद नहीं क्यों
सांसे उतनी ही बची फूलों की
न जाने तितली-भोरें
फूलों के क्यों खास हुए।
उड़ा न पवन
खुशबुओं को इस तरह
मोहब्बतें भी रूठ जाएगी
बेमौसम के पतझड़ की तरह
कुछ याद रहेगी खुशबुओं की
जब तक रहेगी
धड़कन से सांसों की तरह।
खुश्बुएं भी रूठ जाती फूलों से
काँटों की पहरेदारी बनती
दगाबाज की तरह
तोड़ लेता कोई जैसे
अपने रूठे को मनाने की तरह।
चाह है बनना
पेड़ के फूलों की तरह
क्यारियों के फूल तो
अक्सर टूटा करते
इंसान भी इस तरह क्यों
चोर बना करते।
