फिर हाथ में ली कलम
फिर हाथ में ली कलम
कागज़ कलम कही दूर पीछे छूट गई थी,
ज़िन्दगी के बोझ तले मैं कही खुद से रूठ गई थी,
अपना वजूद कहा खोजती ?
जब खुद से, खुद ही खतम हो गई थी।
कागज़ कलम कही दूर पीछे छूट गई थी,
ज़िन्दगी के बोझ तले मैं कही खुद से रूठ गई थी,
पल-पल जिंदगी तो बड़ रही थी,
पर अस्तित्व कही खो गया था।
यहाँ दूसरों की बात नहीं है,
अपनों से ही धोखा मिल रहा था,
मेरी सारी उम्मीदे कही खो सी गई थी,
कागज़ कलम कही दूर पीछे छूट गई।
नन्ही परी मेरी बेटी ने इक दिन "माँ" कह कर बुलाया,
"आप मेरी और में आपकी ताकत हूँ " यह समझाया,
उस दिन से फिर, जीने का अन्दाज़ आया।
अब अपनी ही मौजूदगी मुझे पसंद आती है,
खुलकर जीती हूँ और दूसरो को भी यही सिखाती हूँ,
आँखो मे जो अश्रु की परत चड़ गई थी,
उसे हटाकर, मैं अब तेज़ी से आगे बड़ गई थी।
चलते रहना जीवन का कर्म है,
समझ आते ही आत्म शान्ति से मन भर गया है,
दोस्तो दुखो से थको नही, रुको नही तुम,
पूरी हिम्मत से बस आगे बढ़ते रहो तुम,
जीवन पानी का बुलबुला है, बस पानी ही बन जायेगा,
पर आज का क्षण लौट कर न आएगा।
पर अब न कहूँगी-
कागज़ कलम कही दूर पीछे छूट गई थी,
ज़िन्दगी के बोझ तले मैं कहीं खुद से रूठ गई थी।