फ़ौजी
फ़ौजी
जिनके लहू में इंसानियत का पैगाम बहता है,
जिनके लहू का हर एक कतरा ना जाने कितने सितम सेहता है।
दिलाब सा हौसला लेकर दिन रात जलाते है
जो खुदको उन फ़ौजियों का ज़र्रा ज़र्रा हिंदुस्तान कहता है।
तिरंगे की आन के खातिर जो जान कुर्बान करते हैं,
वो जो वतन के वास्ते खुद को लहूलुहान करते हैं।
जो पहाड़ी देख कर दिल देहेल सा जाता है
उस उचाई पर फतह फौजी जवान करते हैं।
मौत को गले लगाकर जो वतन की शान बढ़ाते हैं
एक घर पीछे छोड़कर जो लाखों घर बचाते हैं।
फ़ना हो जाएंगे मगर वतन पर आंच नहीं आने देंगे,
पासबान है वो सरहदों के किसी पर ज़ुल्म नहीं ढाने देंगे।
गर्दिशो के बादल हो या लाख बलाय आय,
लहराते इस तिरंगे को ना कभी झुक पाने देंगे।
वतन की बात करता हूं तो ज़मीन काप सी जाती है।
आज भी ये बिस्मिल और अशफ़ाक के किस्से सुनाती है।
भगत सिंह सा नाम सुनते ही ये इन्कलाब चिल्लाती है।
जिनकी शहादत की मिसाल सारा जहाँ देता है,
ऐसे वीरो के अफसाने ये लिखती जाती है।
लहू से सींचा था जिसको ये वो हिंदुस्तान है,
हमारी आज़ादी तो उनका किया एहसान है।
वतन के हर वीर को मैं सलाम करता हूं,
अपनी जान को मैं भी वतन के नाम करता हूं।
