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Navin Kishor mahto

Inspirational

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Navin Kishor mahto

Inspirational

पहाड़ी गीत

पहाड़ी गीत

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ऊँची चोटी पर बैठा 

पहाड़ी गीत गाता है !

 जब बर्फ पेड़ों पर सिमटता है 

 सर्द हवाएँ रोंगटे खड़ी करती है  

नदी की धाराएँ जब जम जाती है !


 ऊँची चोटी पर बैठा

 पहाड़ी गीत गाता है ! 

 छोटे कद का पहाड़ी

 भेड़ों को सुनाता है, अपना गीत

तुम पत्थर चरना भी सीख लो

हरी हरी घास हमेशा नहीं रहेंगी !


खोज लो पहाड़ पर शिलाजीत

बंदरों के जैसे ! 

ताकि भुख निगल न जाए  

 जो ठंड से बचाते आया है ! 

अफसोस भुख भी बचा पाता 

मैं सुना रहा हूँ ! 


आखिरी गीत इस पहाड़ पर 

 फिर हरी घास उगे न उगे !

 भुख का ग्रहण गहरा रहा है ! 

 जाने किस दिन पहाड़ ग्रास कर जाए 

फिर तुम रहोगे न मैं रहूँगा ! 

बचा रहेगा ये पथरीली सड़क 

जो कभी पहाड़ हुआ करता था ! 


मेरे पहाड़ी गीत 

जो तुम्हारे ऊनी बालों के साथ 

उड़ता रहेगा सर्द हवाओं में 

तब मुझे दोष मत देना 

इससे पहले कुछ बताया नहीं 


शायद सुनने और सुनाने के लिए 

मैं भी न रहूँ !

तुम भी न रहो ! 

ऊँची चोटी पर बैठा 

पहाड़ी गीत गाता है !


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