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नोटबंदी: बैंकर की व्यथा

नोटबंदी: बैंकर की व्यथा

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चहुँ ओर उठती अंगुली, हर आँख में सवाल है 
पैसा आख़िर गया कहाँ, बैंकर ने किया लगता 'गोलमाल' है,
गुलाबी-हरे नोटों की चाहत में, लम्बी-लम्बी क़तार है
पर नहीं मिल रहा नोट, मच रहा हाहाकार है
आरबीआई कहती भेज रहे कैश, नहीं कोई कमी है
पर कैशियर की नज़र, ख़त्म होते कैश पर जमी है
मीडिया करती चीख़-पुकार, रोज़ दिखाती वही समाचार 
देखो बैंक वाले कर रहे, दिन-दहाड़े भ्रष्टाचार
पर क्या जानें वो, आम बैंकर की व्यथा 
न ब्रांच आने का समय, न जाने का पता 
थोड़े से कैश को, थोड़ा-थोड़ा कर बाँट रहा 
इतने पर भी, ग्राहक से, खा गाली-डाँट रहा 
भीड़ से करता मान-मनुहार, अनजाने डर में जी रहा
घंटों काम करके भी, बदनामी का घूँट पी रहा 
कुछ भ्रष्टों के कुकृत्यों के कारण, बन गया चोर है 
बैंकर पैसा डकार गए, हर ओर यही शोर है
मेरे प्यारे देशवासियों, हर बैंकर को न बदनाम करो 
चालीस दिन की मेहनत पर भी, तनिक ध्यान धरो 
राष्ट्र हित में जिसने, दिन-रात कर दिए एक 
ईमानदार है आज भी बैंकर, इरादे उसके नेक 
जो भ्रष्ट है, ढूँढे उन्हें, और करें सिस्टम की सफ़ाई 
पर मेहनतकश बैंकर की भी,करें, हौसला अफ़्जाई


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