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कवि अरुण अनन्त

Abstract

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कवि अरुण अनन्त

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नजरों से गिरा है जो

नजरों से गिरा है जो

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नजरों से गिरा है जो चल पाना तो मुश्किल है।

किराए का है जो घर ये ढल पाना तो मुश्किल है।

हमारी बात तो छोड़ो जरा अपनी बता जाओ,

हुए मतांध भ्रम में यदि संभल पाना तो मुश्किल है।



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