नारी
नारी
नारी से जन्मीं है नारी
क्यों कहलाती बेचारी ?
जनमी थी आषा सबकी थी
जो जिए तो बन के संस्कारी
रह जाए घर के अंदर ही
न तोड़ जाए चार दीवारी।
पढ़ लिख कर जो बड़ी बनी
सब बोले इसकी मतिवारी
अपनों की आँख में बुरी बनी
लोगों के लिए सत्कारी।
शादी ने सब कुछ बदल डाला
परिवार पर समझी भारी
भेज पराए घर बोला
लो पूरी करदी जिम्मेवारी।
जिसे परमेश्वर था समझा
निकला वही दुराचारी
जीवन किया जिसके संग साँझा
सबसे बड़ा वो अत्याचारी।
टूट कर फिर जुड़ना चाहा
मिले कोई नज़र परोपकारी
खुद को संभल फिर चलना चाहा
कोई साथ मिले हितकारी।
न सखी न सहेली खुद ही चल दी
तेरी हिम्मत पर मैं बलिहारी
नारी ही नारी से जलती
यह सोच कर मैं दिल हारी।
दुनिया कदमों में गिर जाए
जो एक जुट हो जाएं सारी
नारी संग जुड़ जाए नारी
फिर क्यों कहलाये बेचारी ?
