नारी तुम केवल श्रद्धा हो
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
इतना सुनकर, ठग न जाना,
तारीफों के जर्जर पुल चढ़
देखो, गिरकर बह न जाना,
रुख हवा पहचान कर
पाल झटपट तानकर
रफ्तार दे जलयान तू
तू गढ़ सके है गढ़ ले अब
खुद का नया जहान तू।
तूने जना इस सृष्टि को,
तू न झुका अब दृष्टि को-२
मत कर युँ ही बरबाद तू
इन आँसुओं की वृष्टि को।
इनको बना के जलप्रलय-२,
जलमग्न कर हैवान तू।
पद्मावती सीता बनी,
बन चण्डिका महान तू।
तू गढ़ सके है...
तू शक्ति अपनी भाँप ले,
पग से जमीन नाप ले
मुट्ठी में भर, आसमान तू।
ममता की छाँव के तले,
भगवान गोद भी पले,
है, सर्वशक्तिमान तू।
कब तक करेगी तू प्रसव!
बन चिता श्मशान तू।
तू गढ़ सके है...
मत बैठ हिम्मत हार कर
एक बार फिर ललकार कर,
दे पटकनी, बलवान तू।
इन वहशियों पे वार कर
धड़ से जुदा तू भाल कर
बन जा खड्ग तलवार तू।
तू कर सके है कर फतह
हर जंग का मैदान तू।
तू गढ़ सके है...
