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Akhtar Ali Shah

Drama

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Akhtar Ali Shah

Drama

न मरूगां न माचा छोडूंगा

न मरूगां न माचा छोडूंगा

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राजनीति शतरंज है

और

इसमें दो राजाओं का

दो सेनाओं का

होना जरूरी है

खेल की यही मजबूरी है

इसीलिए देश ने

संविधान बनाकर

बना दिए नियम

शतरंज के

जिनके आधार पर खेलती है

राजनीतिक पार्टियाँ

हार जीत का खेल

बनाती है राजा

और चलती है सत्ता की रेल  


पर

जब मैं राजा हूँ (इंसान नही)

तो मैं क्यों मानूं संविधान ?

क्यों मानूं नियम ?

सेना देश की नहीं

सेना मेरी है

जो मैं कहता हूँ वही संविधान है

नियम है, कानून है

देशभक्ति है 

जो मेरा विरोधी है

वो राष्ट्रद्रोही है

सी.बी.आई. मेरी है

आई .बी.मेरी है 

योजना आयोग मेरा है

रिजर्व बैंक का चीफ़ मेरा है

सुप्रीम कोर्ट मेरी है

और राष्ट्रपति, वह भी मेरा है 

मैंने बनाया है उसे

क्या ये लोग मेरी बात नहीं मानेंगे

क्या इनमें इतनी हिम्मत है

जो अपनी अपनी तानेंगे


लाखों अंध भक्त हैं मेरे

जो मुझपे जान देते है

जो मैं सोचता हूँ जान लेते हैं

और मेरे इशारे पर

दो चार की नहीं

हजारों की जान लेते हैं

मुझे प्रोपेगेंडा की कला आती है

मीडिया मेरा ही खाती है

मैंने लाखों को

अपने पीछे पागल बना रहा है

लोग मुझे जुमलेबाज,

फेंकू,

फर्जी जानकारी देने वाला

बताते हैं

पर मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाते हैं 

मैंने

पूंजीपति दोस्तों के दम पर

बड़े बड़ों को दास बना रखा है 

जो मुझे

मेरे ही नजरिये से तौलते हैं

और मेरी जयजयकार बोलते हैं 


मैं विपक्ष को

समूल नष्ट देखना चाहता हूँ

यही मेरी अभिलाषा है

और विपक्ष ही क्यो?

मैं तो पक्ष को भी

पंगू कर देना चाहता हूँ

मैंने तो अपना वजीर

हाथी घोड़े सब मरवा दिये हैं 

अपने मोहरे खुद पिटवा दिये है  

अकेला मैं ही

शतरंज के बोर्ड पर दिखूं

यही मेरा लक्ष्य है

और आप क्या कर लेंगे मेरा?

मैं तो फकीर हूँ

अपने झोली लेकर चला जाऊँगा

कुछ नहीं जोडूंगा

पर

जब तक रहूँगा

न मरूँगा न माचा(पलंग) छोडूंगा



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