न जाने क्यूँ ये रात
न जाने क्यूँ ये रात
न जाने क्यूँ ये रात ढल रही है।
न जाने क्यूँ ये रात पल रही हैं।
मेरी हर साँसों में ये बस रही हैं।
मेरी हर रूह में ये थम रही हैं।
रात कुछ तो मूझसे ये कह रही हैं।
समय घड़ी का रात 2:33 pm हैं।
वक्त फिर मेरे एक अब निकट है।
चाँद तारों के फिर मेरे ये करीब है।
सितारों की इस दुनिया में सजी है।
उस अम्बर के परे देख हार्दिक है।
आसमाँ भी चुप क्यूँ ख़ामोश है।
जमीन भी चुप क्यूँ मदहोश है।
समय फिर से 2:36pm हैं।
जुगनुओं ने मुझें आवाज़ दी है।
पल पल देख कट रही ज़िंदगी है।
फिर मेरी रात तेरी अब हो गई है।
समय 2:38pm हार्दिक लिखा है।
फिर से हार्दिक रात में खो गया है।