मुक्तक
मुक्तक
देखा हैं मैंने बच्चो के मुख पर मुस्कान नहीं हैं,
फुटपाथों पर सोते रहने को उन्हें मकान नहीं हैं||
पाँव के छाले बोलते लहु छलकना लिखा नसीब में,
रोटी मिले सुकून से ऐसा कोई विधान नहीं हैं||
देखा हैं मैंने बच्चो के मुख पर मुस्कान नहीं हैं,
फुटपाथों पर सोते रहने को उन्हें मकान नहीं हैं||
पाँव के छाले बोलते लहु छलकना लिखा नसीब में,
रोटी मिले सुकून से ऐसा कोई विधान नहीं हैं||