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Vineet Yadav

Abstract

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Vineet Yadav

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मुझे भी एहसास होता है मां

मुझे भी एहसास होता है मां

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मैं जताता नहीं पर मुझे भी एहसास होता है मां

मैं रोता नहीं पर मुझे भी दर्द होता है मां


वो घर वो आंगन मुझे भी याद आता है मां

तेरा खाना, पापा की डांट, वो गलियां, वो चौराहा

और दोस्तों का वो साथ मुझे भी याद आता है मां


परिवार के मोह ने मुझसे परिवार का मोह छुड़वा दिया

तेरा मेरा बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए

मुझे मेरे ही घर से दूर भिजवा दिया


पर मैं कमजोर नहीं पडूंगा, मैं लड़ूंगा, मैं बडूंगा,

मैं गिरूंगा, मैं उठूंगा, मैं जीतूंगा और एक दिन चला जाऊंगा


पर मैं फिर से जीने आऊंगा, मैं अपना फर्ज निभाऊंगा

मैं इस कुल का कर्ज उतारूंगा, मैं तेरा कर्ज चुकाऊंगा


तू... तू मेरी बेटी बनकर आना मैं उसका बेटा बनकर आऊंगा

मैं जताता नहीं पर मुझे भी एहसास होता है मां।


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