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Raushan Kumar

Romance

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Raushan Kumar

Romance

मंज़िल

मंज़िल

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बस एक तर्ज़ पे उसने आज चुपके से

भरी महफ़िल में मेरा नाम उछाला है,


रुखसत होते हुए चुभ न जाएं ये शीशे उसे

इसलिए मैंने इन्हें भी बड़ी इज़्ज़त से संभाला है,


कलम ,दवात ,इश्क़ ,नगमे ,अफ़साने

अब मेरे हाथों में मय भरा इक प्याला है,


मंदिर मस्जिद सियासत के लिए छोड़ दी मैंने

मेरी मंज़िल अब साकी, और उसकी मधुशाला है।


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