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Ganesh Gharti magar

Abstract

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Ganesh Gharti magar

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मन शरीर आत्मा

मन शरीर आत्मा

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एक सुबह हर रोज की तरह

 नई उम्मीदो किरनो के साथ की तरह

 नई आशाओं नई आशाओं ने सपनों की तरह

 अपने की खुशियों के साथ

 धेरो अरमान लिए निकला था ?


यह कैसी रोशनी है

पूरा करने सपनों को पर 

 सूरज से जायदा पर शांत सी

 ये कौन सी अप्सरा है

 शांत शीतल एस जो गले लगाये जा रही है 

मुझे गंभीर नींद में सुलाये जरी है 


क्या ये कौन है जो गिर पड़ा है 

खून से लटपथ लावरिशअसहाए 

लोग क्यों घर के आगे खड़े हैं

 हैं अफ्फ याह तो मैं हूं 

पर आंखों में अंशो नहीं 

कोशिश कर रहा हूं पर

 फिर भी मुझसे उठाया नहीं 

जरा शरीर मेरा खुद से?

 

बहुत रोयें मेरे अपने मुझे देख के 

 चाह कर भी उनका दर्द ना बंट पाओंगा

 मेरे शरीर से लिप्टेंगे सब

 में उनसे लिपट नी पाओंगा !

खैर जिंदगी यूं ही चलती रहेगी 

आना जाना लगेगा


 कुछ दिन रॉयंगे फिर सब भूल जाएंगे 

बस अब तो एक तरफ में हूं !

या एक तरफ मेरा शरीर जो नशवर है!

 पंचतत्व में मिल जाएगा 

एक तरफ मेरा लोभ मोह है 

एक तरफ परमात्मा एक तरफ 

मेरा शरीर एक तरफ मेरी आत्मा ?


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