प्रकृति का मन बिल्कुल पानी सा
प्रकृति का मन बिल्कुल पानी सा
प्रकृति भी कितनी अनमोल है जहां
देखो हरा भरा निश्चल है इसका मन पानी सा
ना किसी से लगाओ ना किसी का इंतजार
एकदम इसका मन बिल्कुल पा नी सा
समझ ना सका है यह नर नारी
सेना कभी नही जान पाएगा
जितनी इसके निकट जाओगे उतना ही
इसके रहस्य गुत्थियों में भूल जाओगे
कितना निश्चल है निश्चल है
इसका मन बिल्कुल पानी सा
नर है एक खूंखार प्राणी जो इससे तड़पा रहा
इसके निश्चल मन को चीर रहा अपने हितों को देख रहा है
इसके इसके निश्चल मन से खेल रहा है
ना जान पा रहा है इसकी निर्मलता को
ना जान पा रहा है इसकी असलियत कोमल प्यार को
हैरान हो चुकी है यह प्रकृति इन नर को देखकर
यह प्रकृति निश्चल है तेरा मन बिल्कुल पानी सा।