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Soniya Gujarathi

Abstract

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Soniya Gujarathi

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मन में मचा शोर

मन में मचा शोर

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बाहर है सन्नाटा 

मन में मचा शोर क्यों है ?

चौराहो पे दरोगा,

दिल में बैठा चोर क्यों है ?


धर्म का अंधापन नहीं,

इंसानियत पे जोर क्यों है ?

कल तक जिन से थे खफा,

आज उनपे गौर क्यों है ?


बाहर है सन्नाटा 

मन में मचा शोर क्यों है ?

अदृश्य से इस जंतु से,

युद्ध इतना घनघोर क्यों है ?


जग विजेता नर जाती,

आज यूँ कमजोर क्यों है ?

काली हो चली रात,

दूर इतनी भोर क्यों है ?


बाहर है सन्नाटा 

मन में मचा शोर क्यों है ?


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