मेरी जिद्द
मेरी जिद्द
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हाँ मैं किसी की सुनता नहीं,
यहीं तो बस जिद्द थी !!
चुन लिया था रास्ता मैंने तभी,
चल पड़ा था मैं उस रास्ते पर,
ना पीछे मुड़ कर देखा कभी।
जंग थी इस दुनिया से, ये तो
मैंने जान ली,
जीतना था हर हाल में, ये तो
मैंने ठान ली।
संघर्ष भी क्या ख़ूब थी, अपने
भी जब बैरी हुए,
दुःख तो था मन में मेरे, पर
चल पड़ा मुस्कुराते हुए।
रक्त की इस जंग में हारा भी
था मैं कभी ,
पर जीत की परिभाषा तो सीख
पाया मैं तभी।
मुश्किलों की इस तूफ़ान में,
मुझसे सब छीन गया,
पर पता वही है जिसने सब
कुछ खो दिया।
थी अड़चनें हज़ार भी,
पर कुछ कर गुजरने की
आग थी।
सपनों से समझौता नहीं,
यहीं तो बस जिद्द थी
यहीं तो बस जिद्द थी !!!