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Amit kumar

Inspirational

4.7  

Amit kumar

Inspirational

मेरा दर्द

मेरा दर्द

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तड़प रही हूँ सिसक रही हूँ क्या गुनाह किया हैं मैंने 

इस दुनिया में आने से पहले मेरा दम घोटा है तूने 

क्यों सता रहा क्यों मार रहा इस अनमोल रत्न को हे मानव 

जो किया है क्या वो कम है जो और बन रहा तू दानव 

मर भी जाऊँ मिट भी जाऊँ तू मिटा न सकेगा मुझको 

इस माटी के जीवन के लिए जरुरत है मेरी तुझको 

इस दुनिया में आने से पहले मुझको तू क्यों मार रहा है 

जिस बेटे को पाल रहा उसकी भी माँ एक नारी हैं 

दुष्कर्म और अत्याचार क्या यही है मेरे जीवन का हिस्सा 

हे विधाता मुझको बता ये कैसा लिखा है तूने मेरे जीवन का किस्सा 

अब समझ नहीं आता मुझको कौन बचाये मेरा जीवन

 

जिस जीवन से अस्तित्व् है तेरा वो जीवन कैसा है मेरा 

जिस पेड़ वृक्ष को सींच रहा उसकी ही छाया बेच रहा 

जिस फूल के बिन पूजा है अधूरी उस फूल को ही तू कुचल रहा 

धरती से भारी जिसकी कोख उसको ही समझ रहा है तू बोझ

ध्यान लगा और थोड़ा सोच कि उसकी कोख में कौन था बोझ 

नारी तो ऐसी शक्ति है यमराज भी उससे हारा है 

इस शक्ति को तू क्या मिटा सकेगा जिस शक्ति से ये दुनिया है 

पहचान ले तू इस नारी को ये सोती हुई एक ज्वाला है 

जिस पैर के नीचे शिव लेटें वो काली भी एक नारी है 

और शेर भी जिसके आगे नत मस्तक वो दुर्गा भी एक नारी है !


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