मैं
मैं
1 min
59
मैं ये भी हूँ और मैं वो भी हूँ
सबकुछ हूँ और कुछ भी नहीं हूँ।
अनंत अपरिमित विस्तृत आकाश हूँ
और नन्हे से दिल की सिमटी सी आस हूँ।
अमावस की रात की गहरी काली स्याही हूँ
और उषा की किरणों की सुनहरी लाली हूँ।
मैं रेगिस्तान में एक बूँद की मृगतृष्णा हूँ
राम की सीता तो मोहन की मैं कृष्णा हूँ।
मैं अबोध बालक की निर्दोष मुस्कान हूँ
और नारी का गौरव एवं स्वाभिमान हूँ।
मैं क़ुरआन की आयत और गीता का उपदेश हूँ
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का समावेश हूँ।
धुंधली सी शाम का मद्धिम सा कुहासा हूँ
मैं जीवन युद्ध में कभी न हारने वाली आशा हूँ।
मैं एक शब्द में सिमट जाने वाली कथा हूँ ?
या अनवरत निरंतर चलने वाली गाथा हूँ?