अंतिम यात्रा
अंतिम यात्रा
था नींद में और फिर भी नहलाया जा रहा था मैं,
बड़े प्यार से अंतिम बार इतना सजाया जा रहा था मैं।
जो मुझे कभी देखते भी न थे मोहब्बत से,
आज उनके द्वारा भी खूब प्यार लुटाया जा रहा था ।
न जाने वो कौन सा अजब खेल चल रहा था मेरे घर में,
ठीक छोटे बच्चों की तरह कंधों पर उठाया जा रहा था मैं ।
था मेरे पास हर अपना उस वक़्त,
फिर भी न जाने अपने घर से हीं निकाला जा रहा था मैं ।
न जाने हर कोई हैरान क्यों था मुझे सोता देखकर,
ज़ोर - ज़ोर से रोकर ,मार पीट कर जगाया जा रहा था मैं ।
आख़िर कांप उठी मेरी रूह भी वो मंजर देख कर,
जहां अंतिम बार हमेशा के लिए सुलाया था रहा था मैं ।
मोहब्बत की इन्तहा थी जिनके दिलों में मेरे लिए,
आज आख़िरकार उन्हीं के हाथों जलाया जा रहा था मैं ।
और अंतिम बार दुःख तो तब हुआ मुझे,
जब जलाकर वो अपने हीं पूछने लगे,
अब कितनी देर में पूरी तरह जल जाऊंगा मैं ।
जिन लोगों की खातिर अपना सब कुछ लुटा दिया मैंने,
आज उनके लिए पूरी तरह बेगाना हो गया मैं।