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Khushboo Bansal

Abstract

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Khushboo Bansal

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मैं नारी हूं !

मैं नारी हूं !

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मैं नारी हूं,

कहने को, बहुत बड़ी जिम्मेदारी हूं।

हां मैं नारी हूं।


पैदा होने पर, पिता ने था शोक किया,

बेटा ही चाहिए था,

पर अब जो भी था रब का दिया।

अपना लिया था, जैसे एक बोझ,

चिंता थी हर पल, हर रोज़।


मां भी हुई ना थी खुश कुछ खास,

उसने भी बेटे की ही लगाई थी आस।

आखिर मेरा क्या दोष था,

क्यों मुझसे इतना रोष था ?


सभी ने फिर समझाया था,

तू नारी है,

हां बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।


खेल - कूद कर बचपन बीता,

ज्यों ही लड़कपन में रखा पांव।

संस्कारों के नाम पर,

सपनों का लगा दिया दाव।


फिर एक बार मन में सवाल उठा था,

क्यों मुझसे रब रूठा था?

समय का तेज़ चक्र चला था,

यौवन अब भरा पूरा था।


विवाह की अब तैयारी थी,

बंटने को जिम्मेदारी थी।

दहेज के नाम पर,

ससुराल वालों ने भी,

जमकर मुंह खोला था।

मेरे अस्तित्व को,

रुपए - पैसों में ही तोला था।


आखिर मैं नारी थी,

बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी।


ले - देकर पिता ने विदा किया,

समाज की रीत को अदा किया।

सौंप के मेरा हाथ पति को,

पिता ने मुक्ति पा ली थी।


अब तो पति की बारी थी,

बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी।


पति ने भी साथ खूब निभाया,

अपना आधिपत्य भरपूर जमाया।

संभाल रही थी दोनों कुल का मान,

फिर भी ना मिला किसी से सम्मान।


लुटा दिया सर्वस्व उन्हीं पे,

फिर भी मैं आभारी थी।

हां मैं नारी थी।


फिर एक नया अध्याय चला,

आंगन में नन्हा पुष्प खिला।

गूंज उठी किलकारी थी,

ममता लुटाने की अब बारी थी।


वात्सल्य में उसके डूब गई,

अपना अस्तित्व भूल गई।

पाल - पोष कर बड़ा किया,

यह जीवन उसपर वार दिया।

उस पर मैं बलिहारी थी,

हां मैं नारी थी।


अब वह एक नवयुवक था,

विवाह के लिए सुयोग्य था।

कुलवधु लाने का हुआ विधान,

परिवार उसका बना सुजान।


फिर आया एक दुखद व्यवधान,

जीवन पति का हुआ अवसान।

पति की टूटी सांस थी,

बेटे से ही अब आस थी।


वैधव्य काटने की बारी थी,

दुखिया मैं बेचारी थी।


उसने भी अपना फ़र्ज़ अदा किया

मां की कोख को ही लजा दिया।

वृद्धाश्रम में छोड़ आया,

मां का भार ना उठा पाया।


मर - मरकर जीती थी हो विकल,

अश्रु मोती झरते थे हर पल।

क्यों मैं इतनी लाचार हुई,

अपनों पर ही भार हुई ?


स्मरण फिर मुझे हो आया,

मैं नारी हूं।

बहुत बड़ी जिम्मेदारी हूं।


फिर प्राणों का अंत हुआ,

जीवनकाल समाप्त हुआ।

मुक्त हुआ समाज जिम्मेदारी से,

ईश्वर की अद्भुत रचना नारी से।


हां मैं नारी हूं,

बहुत बड़ी जिम्मेदारी हूं।


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