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Khushboo Bansal

Others

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Khushboo Bansal

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देखती हूं मैं जब झरोखे से

देखती हूं मैं जब झरोखे से

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देखती हूं मैं जब झरोखे से,

एक नन्ही परी को,

उसकी प्यारी बातें,

और कोमल हँसी को।


उसका बचपन मुझे,

अपने बचपन की याद दिलाता है।

खट्टी - मीठी यादों से,

हँसाता और रुलाता है।


भागती है वो जब - जब,

पकड़ने को रंग - बिरंगी तितलियां।

मैं भी ढूंढती हूं,

बचपन की वो सुनहरी गलियां।


उसका वो पुलकित हो,

सावन के झूलों में झूलना।

और मेरा भी उसकी हँसी में खो,

वर्तमान को भूलना।


बारिश में जब वो भीगती,

और खुश होकर झूमती,

मैं भी हर्षित हो कर,

यादों के झूले में झूलती।


दौड़ते हुए कभी जो,

वो ठोकर से गिर जाती है।

मैं भी व्यथित हो जाती,

ठेस मुझे भी लग जाती है।


जब भी कभी वो देख मेरी ओर,

हाथ हवा में हिलाती,

उसके इस अपनत्व से,

मैं आहलादित सी हो जाती।


अद्भुत अपनत्व मुझे,

उसकी आंखों में दिखता है।

मेरी उदास सांझ का,

बस यही सहारा लगता है।


एक अनोखा रिश्ता है,

हम दोनों के बीच में।

एकल परिवारों वाली,

स्वार्थ भरी इस दुनिया की रीत में।


कभी जो खेलते - खेलते,

गेंद मेरे घर आती है,

दादी - दादी कहती वह भी,

दौड़ी चली आती है।


मन की खिड़की खोलकर,

स्वागत उसका मैं करती हूं।

तोतली बोली सुन कर,

खूब हँसा करती हूं।


सच कहती हूं मेरे लिए,

वह रब का भेजा फरिश्ता है।

दुनिया की इस भीड़ में,

निस्वार्थ सा एक रिश्ता है।


ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हो

उसके जीवन में,

है ईश्वर से यही प्रार्थना,

जीवन के इस अकेलेपन से,

ना हो उसका कभी सामना।



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