मै कौन हूं?
मै कौन हूं?


शब्द कठिन है।
सवाल निकट है।
फिर भी करता हूं मनमानी।
जलते हुए शोले पर कोई फेंक रहा है,
ठंडक सा पानी।
करोड़ों वर्षों के प्राणी हूं मैं।
मानवता के कहानी हूं मैं।
नीले वितान के नीचे जीवन बिता रहा हूं।
प्रकृति के हिमगिरि के रवानी हूं।
तन मन धन के लोभ में फंसा हूं मैं।
वो चकई से बना हूं मैं।
जो शीशे समझ कर कभी भी तोड़ देता हैं।
प्रकृति के रोन रेती से निकला हुआ माटी हूं मैं।
प्रथ्वी अपनी अंक में लिए घूमती है मुझे।
मां के आंचल में छिपा निर्मल हूं।
वो जीव के प्राणी है।
जो शब्द गुण के क्षमता रखता हूं।
मै नारकीय नर हूं।
बिना कर्म करे मिलता नहीं।
कर्ज बहुत हूं इस धरातल पर।
बिना ऋण चुकाने जाने का नहीं।