मानवता की शर्मसार...
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रामायण पर मौन रहे तो ,
कल फिर वेद पुराण जलेंगे।
शर्मसार होगी मानवता ,
और जिंदा इंसान जलेंगे ।
जिसके कर्म शूद्र जैसे हैं ,
वही शूद्र कहलाते हैं।
रामायण गीता पुराण सब ,
हमको यही सिखाते हैं।।
जाती भेद न रामायण गाती ,
शबरी बेर राम न खाते ।
केवट को भक्ति ना देते ,
गुह निषाद न गले लगाते ।।
राम भेद करते जाति में तो,
रावण का संघार ना होता ।
उत्तम कुल पुलस्त्य का नाती,
वध करना स्वीकार ना होता।।
परशुराम के तप बल मद को ,
दमन राम कैसे कर पाते ।
मेरे राघव समदर्शी हैं ,
इससे ज्यादा क्या बतलाते ।।
संत रवि से भेद मानतीं ,
तो गंगा मां प्यार न करतीं ।
अगर निकृष्ट मानतीं उनको,
तो भक्ति स्वीकार न करतीं।।
निर्मल मन के हम हो जायें ,
राम हमें अपनायेंगे।
शबरी जैसा भाव जगे तो ,
जूठे फल भी खायेंगे ।।
ग्रंथों के प्रतिकूल चले जो,
उनके पेज़ जलाता हैं।
किसी जाति का हो वह मानव ,
शूद्र वही कहलाता है।।