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Khushi Verma

Abstract

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Khushi Verma

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माँ का प्यार

माँ का प्यार

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माँ कैसे लिखूँ शब्दों में कि तेरा प्यार कैसा है 

तेरी शान में कुछ भी कहना सूरज को दीप दिखाने जैसा है


नौ महीने हमें गर्भ में रखके कैसे तू चल लेती है

हैरान हूँ सोचकर भी तू कैसे इतना सब कर लेती है


अपनी जान लगाकर दाव पर तू हमें इस दुनियाँ में लाती है

तेरी हिम्मत देखकर ये ऋष्टि भी तुझको शीश झुकाती है


खुद गीले में सोती है तू हमें सूखे में सुलाती है

बता दे एक बार माँ इतना स्नेह कहाँ से लाती है


माँ देवकी हो या यशोदा प्यार एक समान हैं करती 

माँ का ही प्यार है जिसमें कभी कोई मिलावट नहीं होती


इतनी औक़ात नहीं है मेरी कि तेरा क़र्ज़ चुका सकूँ

कोशिश लेकिन ज़रूर करूँगी कि तेरे जैसी माँ बन सकूँ।


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