माँ का बलिदान
माँ का बलिदान


माता चिरकाल से ही मातृभूमि रक्षा हेतु
बलि प्राण प्यारों की चढ़ाती चली आ रही।
मेबाड़ की आन रख, चंदन के प्राण रख
स्वयं सुत, दांव पर -लगती चली आ रही।
और चली आ रही है वो सम्हाले उस वेदना को
जो वेदना, तिरंगे को - फहराते चली आ रही।
देश में उजाला कर, आंगन अंधेरा कर
दीप आँसुओं के वो..जलाते चली आ रही।