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Shubham Singh

Abstract Action Thriller

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Shubham Singh

Abstract Action Thriller

लंकेश

लंकेश

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अब जप-तप कहाँ करूँ,

मैं ना रहा लंकेश

मृत्यु की शैय्या पर पड़ा,

जीवन ना हो जैसे शेष।


अपने पापों और दुराचारों का,

फल मैं भोग  रहा हूँ

बस खुश इस बात से हूँ,

मैं राम के हाथों मर रहा हूँ।


क्योंकि मैं लंकेश कोई ना शेष,

बल ज्यादा हैं तो घमंड तो आएगा

जो मुझसे टकराएगा चूर चूर हो जाएगा।


जान कर मैंने सीता का हरण किया,

लाकर उसे अशोक वाटिका में बंद किया


मैं जानता था, पहचानता था

राम ही भगवान हैं, श्री विष्णु का अवतार हैं,


मैं भक्त था काल का, उस महाकाल का,

जिसे सब जानते हैं,

उनके रुद्रा और नर्म भाव को पहचानते हैं।


लेकर वरदान मैं पाप कर्मों पर चल पड़ा,

आज आपने आप को  देखकर मैं खुद में पछताता हूँ,

दुःख के सागर में गोते लगाता हूँ ।


पर मैं खुश इस बात से हूं की

राम के हाथों से मर कर,

मोक्ष के शरण में जाता हूँ । ।


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