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Dikshita Sharma

Tragedy

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Dikshita Sharma

Tragedy

लक्ष्मी बाई

लक्ष्मी बाई

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आवाज़ सुनाई पड़ी “लक्ष्मी आई है “सही कहा - लक्ष्मी ही तो है‘

लक्ष्मी बाई’आज से शुरू इसके अस्तित्व की लड़ाई 

क्या हुआ नहीं हुई ग़र गर्भ में ही शुरू मौक़ा दिया इसे एक जीवन जीने का

भाग्य था इसका शायद पूरी लड़ाई लड़ने कापढ़ें लिखे परिवार जन्म लेने कापढ़ेगी ये भी ,

पढ़ी लिखी कहलायेगीपढ़ें चाहे कुछ भी्,पर वक्त से घर आयेगीअरे लड़की है !

लड़कों की बराबरी कहाँ कर पायेगी रही देर तलक ग़र बाहर घर से तो अपने को कैसे बचा पायेगी

ख़राब भले हो मानसिकता लोगों की ,पर अंकुश दुनिया इसकी उड़ान पर लगायेगी

उड़ान कहाँ, कब,और कितनी हो ये दुनिया तय करके बतायेगी

बांध कर पंख उडान भरने दो ,ज़्यादा दूर नही जा पायेगी

अच्छी नौकरी होगी,अच्छे घर जायेगी अच्छी नौकरी भले ही करे,

भले कमाये कितना भी स्वतन्त्र दिखेगी पर ,क्या असली स्वतंत्रता पायेगी ?

काम बढ़ जायेगा ज़रूर ,अब घर और बाहर दोनों दायित्व निभायेगी

अपना कर्ज चुकायेगी ,पर ताने औरों के खायेगी

अरे लक्ष्मी है घर की ,क्या घर में कर्ज लेकर आयेगी

वेतन भले ही अपना हो ,मेहनत भी भले ही हो अपनी

पर सब दायित्वों के बाद क्या तरक़्क़ी में सिर्फ नौकरी करने वालों की बराबरी कर पायेगी 

ग़र आवाज उठायी तो फिर से दुनिया अपना निर्णय सुनायेगी

लड़की है ,बांधकर पंख उड़ना है यही फ़ैसला सुनायेगी 

सही कहा था किसी ने ‘लक्ष्मी है’लक्ष्मी ही तो है लक्ष्मी बाई -

कभी ख़त्म नहीं होगी इसके अस्तित्व की लड़ाई ।



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