लफ़्ज़ों का खेल
लफ़्ज़ों का खेल
लफ़्ज़ों के इस खेल में देखो
आज सजीव - जनाज़ा आया है,
हर किसी के दिल को चीर
खुद कमबख्त, कलमबंद होकर आया है।
न जाने कितने सच इसमे बुने होंगे,
न जाने कितनो कि रुसवाइ आज कथित होगी,
कुछ राज़ भी छिपे होंगे ,
कुछ गुंगे अलफाज़ भी चिखे होंगे।
कयामत के हर तख्त को तोड़,
आज कयामत छाई है,
हर दिल - ए - रुह की आवाज़ ,
आज लफ़्ज़ों की पहेली बनकर आई है।
हो सके तो समझ कर तो देखो
हो सके तो बतला कर तो देखो,
देखो इस महफिल में कितने
कितने हसीन सितारे है,
सितारो के गलियारो में छिपे
कई राज़ भी यहा पुराने है।
है कोई रंगीन यहाँ
तो एक ही के कई रंग भी है,
है कोई खुली किताब यहाँ
तो कोई किताब, लब - ए - खामोश भी है।
अलफाज़ो के इशारे में अगर देखो
कितनी सुलझी कहानी है,
अल्फाज़ों के दर्द को कभी देखो
देखो कितनी कहानी है।
