लडकी का बसन्त
लडकी का बसन्त


लड़की खुश है क्योंकि
उसमें सपने उगने लगे हैं।
मन के वृक्ष पर
कुहलाने लगी है कोयल
अकेले में/खिड़की से बाहर झांकती है
तो भीतर जनमती है
पहली प्रेम कविता
वह खुश है क्योंकि---
एक गन्ध-सी उभरती है उसके तन में
उस कस्तूरी गन्ध के पीछे
भागती रहती है वह जंगली मृगी की तरह
तब भीतर जनमती है
पहली बासन्ती लहर।
वह खुश क्योंकि ---
वह पानी के दर्पण में देखती है
अपना गुलाबी चेहरा
गालों पर बिखरता, टेसू रंग
हो
ठों पर/भोर के सूरज की लालिमा
अभिभूत खुद पर
वह मुस्कराती, खुश होती है।
लड़की खुश है तो
अपनी ओढ़नी की कोर
लपेटती है उंगली की छोर पर
पैर के अंगूठे से कुरेदने लगती है
जमीन की मिट्टी।
जाने क्यों/क्या सोचती रहती है वह
मन-ही-मन मुस्कुराती
खुश होती रहती है
क्योंकि---अभी हाल ही में समझी है
उसने अपनी पहली प्रेम कविता।
और---बासन्ती रंगों को पहचाना है।
लड़की खुश है, खुश होती है, खुश होती रहेगी
कौन जाने, किसे पता ?