क्या हुआ और क्या होगा
क्या हुआ और क्या होगा
ये रात चली गई तो क्या हुआ,
ये चांद तो रहेगी,
तुम चले गए तो क्या हुआ,
तुम्हारी याद तो रहेगी।
ये दिन चला गया तो क्या हुआ,
ये सूरज तो रहेगा,
आज यहां पे जख्म और ख़ून है,
कल दाग़ तो मिलेगा।
ये सुबह तो सुहाना नहीं रहा,
लेकिन शाम तो जरूर आएगा,
पता नहीं कब ख़ुशी या फिर से,
वही ग़म ले के आयेगा।
हर पल यहां जीने कि कोशिश,
ये बदन करता रहेगा,
मौत से मुलाकात करने के लिए,
खुद को तो एक बार मरना पड़ेगा।
कभी सोचा ही नहीं था,
की ये दिन भी देखना पड़ेगा,
इतनी बड़ी भीड़ में भी,
खुद को अकेला पाऊंगा।
कुछ तो अपने ही लोग,
आज पहचानते नहीं मुझे,
जो कभी कहते थे,
"भूलेंगे नहीं तुझे" ।
कितने कम वक़्त में ,
क्या कुछ बदल गया,
लिखने के लिए मुझे,
कहानी नहीं इतिहास मिल गया।
पता है मुझे ये दुनिया,
दर्द के बदले दर्द ही देगा,
बस इसी इंतजार में हूं,
कब दर्द, दबा बन जाएगा ।